एक बार फिर हुआ सूर्य उदय
गरिमा ऊष्मा सुनहरी लिये।
पुलकित पल्लव कोमल भोर
आज फिर नाचा मन-मोर।
रंग बहुत है हमारी सृष्टि मे
ओझल हुए थे कभी दृष्टि से।
हर सुबह का संदेश एक
कल की परत उतार कर फेंक।
कितनी भी गहरी थी रात
वह थी बस कल की बात!
खिलखिला उमड़ कर हँस
खनन-खनन कर ध्वंस-
छोटे- छोटे पत्ते उमड़ने दे अभी
नए -नए रास्ते घुमड़ने दे कभी!
न समय का पहरा, न बाहर कोई आवाज़
बस यह दिल हमारा- और दिल का साज़।
गहराइ से दिल की बोल दे दो बोल
छिपा रहे न कुछ- सारे रहस्य खोल!!
मिल जाएँ जहाँ सूरज व धरा दूर कहीं
चल साथ थामे हाथ चल बस वहीं...
थामे हाथ चल बस वहीं!!
~Nidhi Dhawan
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